الصلوۃ السلام علیک یارسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم
नमाज़ के लिये छः (6) शर्तें हैं
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| namaz ki sharten |
नमाज़ के लिये छः (6) शर्तें हैं अगर इनमें से एक भी शर्त पूरी न हो तो नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते। लिहाज़ा हमारे लिये यह ज़रूरी है कि इनके बारे में पूरी जानकारी हासिल करके नमाज़ शुरू करने से पहले इनको पूरा करें ताकि अल्लाह तआला के हुक्म और अपने प्यारे नबी मुहम्मद صلی اللہ علیہ وسلمके बताये हुए तरीक़े के मुताबिक़ नमाज़ अदा कर सकें ।
नमाज़ की शर्तें हैं-
1. तहारत यानि पाकी
2. जिस्म का ढकना (सत्रे औरत)
3. क़िब्ले को रुख़ करना (इस्तक़बाले क़िब्ला)
4. वक़्त
5. नीयत
6. तकबीरे तहरीमा (नीयत बाँधना)
1. नमाज़ की पहली शर्त तहारत (पाकी):
कपड़े और नमाज़ पढ़ने की जगह ज़ाहिरी निजासत से पाक हों।
जिस्म हुक्मी निजासत (हदस) से पाक हो मतलब वुज़ू/ग़ुस्ल किया हो।
तहारत (पाकी) की हक़ीक़त
2. नमाज़ की दूसरी शर्त जिस्म का ढकना (सत्रे औरत)
इसका मतलब यह है कि बदन के जिस हिस्से का छिपाना फ़र्ज़ है उसको छुपाना।
मर्द के लिए नाफ़ के नीचे से घुटनों के नीचे तक छिपाना फ़र्ज़ है। नाफ़ उसमें शामि़ल नहीं लेकिन घुटने शामिल हैं
औरतों के लिए सारा बदन, बाल ,गर्दन और कलाइयाँ छिपाना ज़रूरी है लेकिन मुँह, हथेलियों और पाँव के तलवों को खुला रखना चाहिये।
3. नमाज़ की तीसरी शर्त इस्तक़बाले क़िब्ला (क़िब्ले को रुख़ करना)
इसका मतलब है कि नमाज़ के लिये क़िब्ला यानि “काबा” की तरफ़ मुँह करना। यहाँ एक ध्यान में रखने वाली बहुत ज़रूरी बात यह है कि नमाज़ अल्लाह ही के लिये है और उसी के लिये पढ़ी जाये और उसी के लिये सजदा हो न कि काबा को। अगर किसी ने “मआज़ अल्लाह” काबे के लिये सजदा किया यह हराम व गुनाहे कबीरा किया और काबे की इबादत की नीयत तो खुला कुफ़्र है क्योंकि ख़ुदा के अलावा किसी और की इबादत कुफ़्र है।
4. नमाज़ की चौथी शर्त वक़्त
मुसलमानों पर पूरे दिन में पाँच नमाज़ें फ़र्ज़ की गई हैं जो उनके मुक़र्रर किये हुए वक़्तों में पढ़ना ज़रूरी हैं। किसी वजह से मुक़र्ररा वक़्त में नहीं पढ़ सके तो नमाज़ क़ज़ा पढ़ी जायेगी। लेकिन यह बात ध्यान में रखना ज़रूरी है कि बग़ैर किसी ऐसी मजबूरी के जिसमें शरियत की तरफ़ से छूट है नमाज़ क़ज़ा करना बहुत सख़्त गुनाह है। पाँचों नमाज़ों के मुक़र्ररा वक़्त इस तरह हैं।
इसका मतलब है कि दिल में यह इरादा हो कि नमाज़ सिर्फ़ अल्लाह के वास्ते और उसका हुक्म पूरा करने के लिये पढ़ रहा है और यह कि किस वक़्त (यानि फ़ज्र, ज़ुहर वग़ैरा) कि कौनसी (यानि फ़र्ज़, सुन्नते वग़ैरा) नमाज़ पढ़ रहा है। नीयत में ज़ुबान का भी ऐतबार नहीं यानि अगर दिल में ज़ुहर का इरादा किया और ज़ुबान से अस्र निकल गया तब भी ज़ुहर की नमाज़ हो जायेगी। बेहतर यह है कि नीयत को ज़ुबान से इस तरह कहे “नीयत की मैने वास्ते अल्लाह तआला के, चार रकआत (या जितनी हों), नमाज़ फ़र्ज़ वक़्त ज़ुहर (या जो भी हो) का, “मुँह मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़” अगर जमाअत से नमाज़ पढ़ रहा है तो इमाम कि इक़तिदा की भी नीयत करें यानि यह कहे “पीछे इस इमाम के”
6. नमाज़ की छठी शर्त तकबीरे तहरीमा
इसका मतलब है कि नमाज़ शुरू करने के लिये दोनो हाथों को कानों तक उठाकर ‘अल्लाहु अकबर’कहना। तकबीर कहते ही नमाज़ शुरू हो जाती है यह फ़र्ज़ है इसके बग़ैर नमाज़ नहीं होती। एक बात ध्यान में रखनी ज़रूरी है कि अगर किसी ने इमाम से पहले तकबीरे तहरीमा कह दी तो वह जमाअत में शामिल नहीं हुआ

